इंस्पेक्टर को इस बात की जानकारी हुई कि पीड़ित अनुसूचित जाति-जनजाति से सम्बन्धित है तो उन्होंने विवेचना अधिकारी को एससी-एसटी एक्ट की धाराएं बढ़ाने का निर्देश दिया और धाराएं बढ़ा भी दी गईं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि एससी-एसटी आयोग को सीधे मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार नहीं है. हाईकोर्ट ने मथुरा के छाता थाने में तैनात पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के एससी-एसटी आयोग के आदेश पर भी रोक लगा दी है. जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता वीके मिश्रा ने बताया कि मथुरा में एससी एसटी आयोग ने बिना किसी जांच के पुलिस कर्मियों के खिलाफ सेक्शन 4 एससीएसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया था. जिसे खिलाफ पुलिसकर्मी हाईकोर्ट पहुंचे. जिसकी आज सुनवाई हुई. जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई पूरी होने के बाद स्थगन आदेश पारित कर दिया. साथ ही कहा कि एससी-एसटी आयोग को तत्काल मुकदमा दर्ज कराने का आदेश नहीं है।
ये है मामला
प्रेम सिंह नामक व्यक्ति ने छाता थाने में मारपीट की घटना की तहरीर दी थी. प्रेम सिंह की तहरीर पर छाता थाने में तैनात इंस्पेक्टर ने मारपीट की धाराओं में मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था. लेकिन इंस्पेक्टर को इस बात की जानकारी हुई कि पीड़ित अनुसूचित जाति-जनजाति से सम्बन्धित है तो उन्होंने विवेचना अधिकारी को एससी-एसटी एक्ट की धाराएं बढ़ाने का निर्देश दिया और धाराएं बढ़ा भी दी गईं. इसके बाद विवेचना अधिकारी ने विवेचना पूरी कर क्षेत्राधिकारी को सौंप दिया।
इस बीच पीड़ित प्रेम सिंह एससी-एसटी आयोग चले गए और वहां पर मामले की शिकायत की. जिसके बाद आयोग ने बगैर किसी जांच के छाता थाने में तैनात पुलिस कर्मियों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज करने का आदेश दे दिया. पुलिस कर्मियों ने एससी-एसटी आयोग के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई की और स्थगन आदेश पारित कर दिया।