विश्व के करीबन 25 देशों में पिछले वर्ष में समलैंगिकों को कानूनी रूप से अपनाया गया। भारत में धारा 377 के चलते यह केस भारतीय उच्च न्यायालय में चल रहा है। दो व्यवस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए संबंधों को आपराधिक करार देने वाली इस धारा की जांच की जा रही है। इस धारा के अंर्तगत यह माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से अप्रकृतिक यौन संबंध बना रहा है तो उसे जेल या जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह धारा भारत में करीबन 150 वर्ष पूर्व लाई गई थी जिसके चलते इसे एक अपराध करार दिया था। समलैंगिकों के अंदर मुख्यतर गे, ट्रांसजेंडर, लेस्बियन आदि आते हैं। कनाडा, ब्रिटेन व अमेरिका जैसे बड़े देशों ने भी समलैंगिता को कानूनी करार किया है व इसके लिए उन्होनें अपने कानून में बदलाव भी किया है। भारतीय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा व अन्य जजों की बेंच के नीचे इस धारा की सुनवाई की जा रही है। इस धारा को आज भी हमारे देश में असंवैधानिक माना गया है। 2018 के जुलाई महीने की 10 तारीख से इस विवादित धारा पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। अभी तक आए फैसले और प्रक्रिया के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि शायद सुप्रीम कोर्ट इस धारा में प्रविर्तन ला सकती है व समलैंगिकों को आज़ादी से जीने का अधिकार दे सकती है। कोर्ट का मानना है कि हमारे देश में सभी को अपने जीवन साथी चुनने का अधिकार है व इस धारा में यह मद्दगार साबित हो सकता है। कोर्ट के अनुसार अगर समलैंगिकों के यौन संबंधों को कानूनी से बाहर कर दिया गया तो समलैंगिक सशक्त महसूस करेंगें। इस मामलें में उच्च न्यायलय के अंदर जनमत संग्रह की याचिका भी दायिर की गई थी जिस कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट की अभी तक की कारवाई से समलैंगिक समुदाय खुश है और उसे उम्मीद है कि उन्हें भी इंसाफ मिलेगा। हमारे देश में दोनों प्रकार के लोग हैं जो इस प्रक्रिया को फायदेमंद बता रहें हैं वहीं दूसरे इसका विरोध कर रहें हैं। इस समुदाय ने भी अपनी बात आगे रखी और बताया कि उन्हें स्कूल से लेकर दफतरों तक भेदभाव सहना पड़ता है जो गलत है और कष्टदायक है। दो ईसाई संस्थानों ने इस प्रक्रिया का विरोध किया है और तर्क कोर्ट में पेश किया है। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड पहले इसका विरोध कर रहा था परंतु अब इस संस्थान ने इसका फैसला कोर्ट पर छोड़ दिया है। जहां 25 देशों ने समलैंगिता को कानूनी करार दिया है वहीं अभी भी 76 देश इसे अभी भी गैरकानूनी मानते हैं। यूपीए सरकार के समय सरकार ने इस धारा का समर्थन दिया था परंतु दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे गैरकानूनी बताया था। मौजूदा सरकार को रवैया भी इस धारा को लेकर साफ नही है। कोर्ट ने पहले यह दलील दी थी कि अगर इस समुदाय को इजाज़त मिल गई तो उससे एचआईवी और एड्स फैलने के मौके बढ़ जाएंगें।