श्रम कानून में किया बदलाव, जानिए इंडस्ट्री के हित में है या नहीं
कोरोना महामारी के चलते जो हालात बने है उनके बीच कई राज्यो ने अचानक अपने राज्य के श्रम कानूनी में भारी बदलाव किए है. अगर यूपी की बात करें तो बहुत से कानूनों को तीन साल के लिए खत्म ही कर दिया है. इन कानूनों की वजह से श्रमिको और कामगारों को संरक्षण मिलता था. इन कानूनों में बदलाव किए जाने के कारण तमाम तरह के श्रम संगठन और विपक्ष द्वारा इसकी घोर आलोचना की जा रही है.
आपको बता दें कि विभिन्न राज्यो ने श्रम कानून में बदलाव किए है. लेकिन खासकर यूपी सरकार ने इन्हे तीन सालों के लिए बदलाव किए जाए है इस कारण योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर है. अगर इन कानूनों की बात करें तो ये कानून श्रमिको और कामगारों को पूंजीपतियों और इंडस्ट्री के शोषण से बचाते थे.
इस माह की छह तारीख को योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक ऑर्डिनेंस लाकर सभी तरह के कारखानों और प्रतिष्ठानों को तीन साल के लिए ज्यादातर लेबर लौ से मुक्त कर दिया था. इन कानूनों के सहारे यूनियन के गठन का अधिकार, औद्योगिक विवाद कि स्थिति में शिकायत पाने का अधिकार और समुचित मशीनरी से उसका निराकरण पाने का अधिकार शामिल है. जिन विवादों का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है वो कारण है, पहला नयनूतम वेतन मिलने का अधिकार खत्म करना, दूसरा बुनियादी सुरक्षा और कल्याणकारी मानकों की अनुपस्थिति, तीसरा इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट को खत्म कर देना, चौथा यूनियन के गठन का अधिकार खत्म करना, पांचवा हफ्ते में 72 घंटों तक यानी हर दिन 12 घंटे काम (इसको हाईकोर्ट के नोटिस के बाद इसको सरकार ने निरस्त के दिया है).