भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 377 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने धारा 377 को अवैध माना है यानि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि पहचान बनाए रखना जीवन का धरातल है। LGBTQ समुदाय के लोगों को भी अन्य लोगों जितने सामान्य अधिकार हैं।
समलैंगिकता पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जजों ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है। जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है। इस अधिकार के बिना सभी अधिकार औचित्यहीन लगने लगते हैं। सेक्शुअल ओरिएंटेशन (यौन रुझान) बयॉलजिकल है। इस पर रोक संवैधानिक अधिकारों का हनन है।