Aj न्यूज़ सिंहवाड़ा से विजय कुमार ठाकुर की रिपोर्ट
सिंहवाड़ा उतरी: दमन बाबू पोखर के पास अति प्रचीन काल (114 वर्षो) से श्री *कृष्णजन्माष्टमी* भक्ति भाव, उल्लास एवं विधि विधान से मनायी जा रही है। यहाँ श्री कृष्ण के बाल-रूप को प्रतिरूपित किया गया है। जो अत्यंत ही दुर्लभ एवं विलक्षण है।श्री कृष्ण के पालक पिता नन्द जी की विशालकाय प्रतिमा जिसमे उन्हें हुक्का पीते हुए दर्शाया गया है, जो अति विशिष्ट है। इसके साथ कई देवी देवताओं की प्रतिमा जैसे- देवकी, यशोदा, बशुदेव,गर्ग मुनि ऋषि भारद्वाज, बलराम, माता दुर्गा महिषासुर का वध करते हुए आदि की भव्य झलक देखने को मिलती है
इस उत्सव में आसपास के कई गांवों से दरणार्थी दर्शन करने आते है और भगवान श्री कृष्ण का चतुर्भुज रूप दर्शन कर निहाल हो उठते है।
एक माह पूर्व से ही ग्रामीण मूर्तिकार राजा राम ठाकुर (जिसे यह कला अपने पिता राजेन्द्र ठाकुर से विरासत में मिली है) अपने पुत्रों के साथ मिलकर यह सब बनाते है।पूजा आयोजक पुरुषोत्तम झा ” बुचन बाबू” कहना है कि यहाँ पूजा विशिष्ट पद्धति द्वारा की जाती है। यहाँ पूजा करने वाले पुरोहित अपने परिवार के ही सदस्य होते है उन्हें बड़े नियम -निष्ठा से एकदिन पूर्व से ही रहना होता है दिन में सिर्फ एक ही बार खाना खाने (एकभुक्त)का नियम है। दूसरे पूरे दिन व्रत में रहना होता है।
यहाँ पूजा के एक दिन पूर्व से मेले के डेरे खेमे लगना शुरू हो जाता है। जन्मोउत्सव के दिन भव्य मेला लगता है। जहाँ खाने से लेकर बच्चे के खिलौने आदि का बड़ा बाजार देखने को मिलता है।
यहाँ 15 दिन पहले से ही चांदी का बाजार गर्म हो जाता है चांदी की बांसुरी बिकना शुरू हों जाता है।
ग्रामीणों का मानना है कि यहाँ आकर कोई खाली हाथ नही गया है जो मन्नत करते है उनकी मुराद हमेशा श्री कृष्ण पूरा करते है। पुत्र प्रप्ति से लेकर अन्य कई लोगो के मन्नत पूरी होने पर चांदी के बासुरी श्री कृष्ण के चरणों में चढाते है।
पवन ठाकुर, राघवेंद्र झा, राजीव झा, सुभाष झा, कृष्ण झा, वेदांग झा, माधव झा, सुशील महतो, दिलीप भगत, कारी पासवान, परीक्षण कहार आदि ग्रमीणों का कहना है कि यहाँ 11:30 से 12:30 रात्रि में *नंद के आनंद भयो,जय कन्हया लाल की, हाथी – घोड़ा पालकी* आदि के जय घोष से पूरा टोला एवं गाँव का वातावरण भक्तिमय हो जाता है और नई ताजगी का अनुभव होता है।
इस उत्सव में आसपास के कई गांवों से दरणार्थी दर्शन करने आते है और भगवान श्री कृष्ण का चतुर्भुज रूप दर्शन कर निहाल हो उठते है।
एक माह पूर्व से ही ग्रामीण मूर्तिकार राजा राम ठाकुर (जिसे यह कला अपने पिता राजेन्द्र ठाकुर से विरासत में मिली है) अपने पुत्रों के साथ मिलकर यह सब बनाते है।पूजा आयोजक पुरुषोत्तम झा ” बुचन बाबू” कहना है कि यहाँ पूजा विशिष्ट पद्धति द्वारा की जाती है। यहाँ पूजा करने वाले पुरोहित अपने परिवार के ही सदस्य होते है उन्हें बड़े नियम -निष्ठा से एकदिन पूर्व से ही रहना होता है दिन में सिर्फ एक ही बार खाना खाने (एकभुक्त)का नियम है। दूसरे पूरे दिन व्रत में रहना होता है।
यहाँ पूजा के एक दिन पूर्व से मेले के डेरे खेमे लगना शुरू हो जाता है। जन्मोउत्सव के दिन भव्य मेला लगता है। जहाँ खाने से लेकर बच्चे के खिलौने आदि का बड़ा बाजार देखने को मिलता है।
यहाँ 15 दिन पहले से ही चांदी का बाजार गर्म हो जाता है चांदी की बांसुरी बिकना शुरू हों जाता है।
ग्रामीणों का मानना है कि यहाँ आकर कोई खाली हाथ नही गया है जो मन्नत करते है उनकी मुराद हमेशा श्री कृष्ण पूरा करते है। पुत्र प्रप्ति से लेकर अन्य कई लोगो के मन्नत पूरी होने पर चांदी के बासुरी श्री कृष्ण के चरणों में चढाते है।
पवन ठाकुर, राघवेंद्र झा, राजीव झा, सुभाष झा, कृष्ण झा, वेदांग झा, माधव झा, सुशील महतो, दिलीप भगत, कारी पासवान, परीक्षण कहार आदि ग्रमीणों का कहना है कि यहाँ 11:30 से 12:30 रात्रि में *नंद के आनंद भयो,जय कन्हया लाल की, हाथी – घोड़ा पालकी* आदि के जय घोष से पूरा टोला एवं गाँव का वातावरण भक्तिमय हो जाता है और नई ताजगी का अनुभव होता है।
मध्य रात्रि में 12 बजे में श्री कृष्ण के चतुर्भुज रूप के दर्शन कर आशीर्वाद लेने के लिए भक्तो की भीड़ की हुजूम भी उमर पड़ती है। ठीक इसी समय में यहाँ महिलाओ (जो निखण्ड व्रत में रहती है)के द्वारा भगवान श्री कृष्ण का चुमाओन भी किया जाता है जो शायद बिरले ही कही कही देखने को मिलता होगा।