सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को धारा 377 की वैधानिकता पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। इसका मतलब है कि अब दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध अपराध नहीं कहलाएंगे। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि देश में सबको समानता का अधिकार है, समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। अब तक देश में समलैंगिकता को अपराध माना जाता था और इस अपराध के लिए 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान था। इसके खिलाफ देशभर में कई मामले भी दर्ज हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की मानें तो 2016 में धारा 377 के तहत उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जबकि इस मामले में केरल दूसरे पायदान पर है। आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 2016 में धारा 377 के तहत 999 मामले दर्ज हुए थे, जबकि केरल में 207 मामले दर्ज हुए थे। इसके अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों की बात करें तो तेलंगाना में 11, कर्नाटक में 8 और आंध्र प्रदेश में 7 मामले दर्ज हुए थे। धारा 377 के तहत प्रति एक लाख लोगों पर दर्ज होने वाले मामलों के आपराधिक आंकड़ें देश में सबसे ज्यादा केरल में हैं। यहां का आपराधिक दर 0.6 फीसदी है, जबकि उत्तर प्रदेश में 0.5 फीसदी आपराधिक दर है। वहीं, दिल्ली में यह 0.8 फीसदी है।