दिल्ली में रहने वाले एक शख़्स की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का बंटवारा हुआ। तो क़ानूनी तौर पर उनकी संपत्ति का आधा हिस्सा उनकी पत्नी को मिलना था और आधा हिस्सा उनके बच्चो यानि एक लड़का और एक लड़की दोनों को लेकिन जब लड़की ने अपना हिस्सा माँगा तो लड़के ने देने से साफ़ इंकार कर दिया। माँ ने भी बेटी का समर्थन किया पर बेटे ने विरोध कर कहा कि पूरी प्रॉपर्टी उसे ही मिलनी चाहिए। इस बात पर दिल्ली हाई कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत फैसला सुनाया कि अभी मृतक की पत्नी जिन्दा हैं तो उनका और मृतक की बेटी का भी संपत्ति समान रूप से हक़ बनता हैं। साथ ही कोर्ट ने बेटे पर एक लाख रुपय का हर्ज़ाना भी लगाया क्योंकि इसकी वजह से माँ को काफी नुकसान और मानसिक तनाव भी उठाना पड़ा। आमतौर पर हमारे समाज में बेटे को ही पिता का उत्तराधिकारी माना जाता हैं। लेकिन साल २००५ के संशोधन के बाद कानून का यह कहना है कि बेटा और बेटी दोनों का संपत्ति पर बराबर का हक़ हैं। दिल्ली के वकील जयति ओझा के मुताबिक अगर किसी पैतृक संपत्ति का बंटवारा २० दिसंबर २००४ से पहले हो गया हैं तो उसमे लड़की का हक़ नहीं होगा क्योंकि इस मामले में पुराना हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम लागू होगा। इस सूरत में बटवारे को रद्द भी नहीं किया जाएगा। यह कानून हिन्दू धर्म से ताल्लुक़ रखने वालो पर लागू होता हैं। इसके अलावा बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोग भी इसके तहत आते हैं।