मोदी सरकार ने 4 साल बाद नया स्लोगन गढ़ा है. नये स्लोगन में बीजेपी का एजेंडा और 2019 के लिए खास रणनीति का अक्स देखा जा सकता है।
अपनी सरकार के चार साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा खुद का रिपोर्ट देने का आइडिया अपनी जगह सही है. किसी को इस बात से भी आपत्ति नहीं हो सकती कि वो देश के किस हिस्से में रिपोर्ट कार्ड पेश करें, लेकिन जगह विशेष के पीछे कोई वजह समझ में आये तो मन में कुछ सहज सवाल जरूर उभरते हैं. सवाल ये है कि प्रधानमंत्री रिपोर्ट कार्ड के लिए ओडिशा को क्यों चुना?
क्या मोदी के ओडिशा में रिपोर्ट कार्ड पेश करने के पीछे बीजेपी की दक्षिणायन होती कोई रणनीति है?
दक्षिणायन होती बीजेपी
बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस में अमित शाह से दक्षिण भारत को लेकर पार्टी के रुख के बारे में पूछा गया. जवाब में अमित शाह ने कर्नाटक में बीजेपी के प्रदर्शन का उदाहरण दिया. दक्षिण में पोटेंशियल की बात मानते हुए अमित शाह ने सवालिया लहजे में कहा – ‘कर्नाटक में 40 से 104 पर पहुंचना आखिर क्या है?’
दक्षिण भारत का पहला राज्य कर्नाटक ही रहा जहां येदियुरप्पा ने बीजेपी के संगठन को खड़ा किया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए. कोशिश तो उन्होंने नये सिरे से भी की थी, बहुमत से पिछड़ जाने के बावजूद लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाने के चलते नाकाम हो गये. बहरहाल, सवाल ये है कि बीजेपी की ओडिशा को लेकर इतनी ज्यादा दिलचस्पी क्यों है? एक ऐसा राज्य जहां लोक सभा की 21 सीटों में से सिर्फ एक सीट बीजेपी के पास है. ओडिशा में भी विधानसभा चुनाव आम चुनाव के साथ ही 2019 में होने हैं।
अब तक धारणा यही रही है कि प्रधानमंत्री पद का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है. मोदी ने भी यही सोचकर गुजरात से यूपी का रुख किया और वाराणसी को संसदीय क्षेत्र बनाया. 2014 में वो चुनाव तो गुजरात के वडोदरा से भी लड़े थे, लेकिन बाद में वो सीट छोड़ दी।
कुछ मीडिया रिपोर्ट में 2019 में मोदी के ओडिशा से भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही है. पिछली बार जब मोदी ने यूपी का रुख किया तो वहां भी बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं थी. मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यूपी में न सिर्फ 71 सीटें जीतीं बल्कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज कर सूबे में सरकार बनाने में भी सफल हुई।
बीजेपी की यूपी वाली रणनीति के हिसाब से देखें तो मोदी के ओडिशा की ओर रुख करने को लेकर तस्वीर थोड़ी साफ होती लगती है. ओडिशा में रिपोर्ट कार्ड पेश करने की बात भी उन मीडिया रिपोर्ट का सपोर्ट करती है जिनमें उनके वाराणसी के अलावा ओडिशा की किसी सीट से चुनाव लड़ने की बात चल रही है. कर्नाटक के मंच पर विपक्षी दलों की जो एकजुटता दिखी उसके बाद एक सर्वे में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान यूपी में भी देखी गयी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बीजेपी की मौजूदा सीटों में से 56 सीटों का नुकसान देखा गया और उनमें 46 यूपी से पायी गयीं. इससे भी लगता है कि बीजेपी यूपी सहित उत्तर भारत में होने वाले नुकसान की भरपाई दक्षिण से करना चाहती है – और ओडिशा उसे हर हिसाब से माकूल लग रहा होगा ।
वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी पिछले तीन साल में छठी बार ओडिशा के दौरे पर हैं. 2017 में ओडिशा में ही बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी – और तभी अमित शाह ने बीजेपी के स्वर्णकाल की बात कही थी. हाल ही में शाह ने दोहराया कि जब तक ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सरकार नहीं बन जाती मिशन पूरा नहीं होगा. ये बात शाह ने तब कही थी जब वो मान कर चल रहे थे कि कर्नाटक चुनाव तो बीजेपी जीतेगी ही।
बीजेपी ने उत्तर से दक्षिण की ओर रुख करने की रणनीति तो काफी हद तक साफ कर दी है – क्या नया स्लोगन गढ़े जाने में भी इसी रणनीति की कोई भूमिका है?