बिहार में इस समय पांच वर्ष तक के बच्चों की संख्या देश के किसी अन्य राज्य से अधिक करीब 13.2 प्रतिशत है। मगर यह भी हकीकत है कि इनकी एक बड़ी संख्या असमय मौत की शिकार हो रही है, जिसका मुख्य कारण कुपोषण है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में एक हजार में से 59 बच्चे पांच वर्ष से अधिक जी नहीं पाते हैं। हालांकि, अगर पांच साल से अधिक उम्र के बच्चों को भी शामिल कर देखा जाए तो राज्य में शिशु मृत्यु दर 38 प्रतिशत है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि असम, ओडीशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के पांच वर्षों तक के सबसे अधिक बच्चे मौत के शिकार हो रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदेश में काम कर रही संस्था सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंग (सी-3) द्वारा एनएफएच-4 और एसआरएस के आंकड़ों के विश्लेषण कर तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि खराब पोषण स्तर के कारण इस आयु वर्ग के बच्चों की मौत हो रही है।
- प्रसव के पूर्व भी गर्भवतियों को बेहतर पोषाहार नहीं मिल पाता, उनकी अपेक्षित देखभाल नहीं हो पाती। प्रसव से पूर्व चार चेक-अप होने हैं, मगर बिहार में इसका अनुपालन सबसे कम है। यहां मात्र 14 प्रतिशत गर्भवतियों को ही यह सुविधा मिल पाती है। देश में 30 में से छह गर्भवतियों को प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त होती है, जबकि बिहार में यह अनुपाल 30 में से एक गर्भवती का है।
- सी-3 की रिपोर्ट के मुताबिक 10 ऐसे जिले हैं जो पोषण के मानकों पर राज्य औसत से काफी नीचे हैं। इनमें अरवल, गया, नालंदा, मधेपुरा, बांका, कैमूर, औरंगाबाद, पूर्णिया, अररिया एवं नवादा शामिल हैं। इन 10 जिलों में से अधिकांश झारखंड सीमा पर अवस्थित हैं। मात्र तीन जिले-गोपालगंज, सिवान एवं पश्चिम चंपारण, ऐसे हैं जहां कुपोषण का स्तर कम है। ये तीन जिले साक्षरता दर, प्रसव पूर्व देखभाल, स्तनपान, महिलाओं के बीच एनीमिया जैसे मानकों पर राज्य औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।