भारत से नेपाल जाने के लिए सबसे सुगम सड़क मार्ग पूर्वी चंपारण के रक्सौल से होकर जाती है। लेकिन, मित्र देश के सफर में सहायक ‘मैत्री पुल’ और इसके पहुंच पथ की हालत इतनी खराब है कि कब हादसा हो जाए कहना मुश्किल है। दरअसल भारत-नेपाल सीमा पर स्थित इस ‘मैत्री पुल’ के बारे में किसी भी विभाग को जानकारी ही नहीं है कि यह किसके अधीन है। नतीजा पिछले दो साल से जर्जर पुल के निर्माण के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है।
नेपाल से निकली सरिसवा नदी पर बने इस पुल पर जो शिलापट लगा है, उसके अनुसार इसका निर्माण 1994 में भारत सरकार ने कराया था। 60 मीटर लंबे और 7.5 मीटर चौड़े पुल के निर्माण में लोगों की हर सुविधा का ध्यान रखा गया। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर होने के कारण पुल के दोनों किनारों पर पैदल जाने के लिए फुटपाथ का निर्माण भी कराया गया। लेकिन, इसका रख-रखाव नहीं हो सका। हालत यह है कि आज इसपर दो-दो फीट के गड्ढे बन गए हैं। पुल को जोडऩे वाली करीब चार सौ मीटर सड़क का भी यही हाल है।
लगातार शिकायत के बाद पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी (डीएम) ने रक्सौल के अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीएम) से रिपोर्ट मंगाई तो कहा गया कि सड़क निर्माण कराने वाली कोई भी सरकारी एजेंसी पुल के अपने अधीन होने का दावा नहीं कर रही है। फिर मरम्मत कौन कराएगा?
डीएम ने प्रधान सचिव को लिखा पत्र
यह हकीकत प्रशासनिक जांच में भी सामने आई कि इस दिशा में कोई सरकारी एजेंसियों पहल नहीं कर रही है। अंत में डीएम ने बीते चार सितंबर को पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिख इसकी जानकारी दी।
डीएम पूर्वी चंपारण रमण कुमार कहते हैं कि समस्या गंभीर है। सूत्र बताते हैं कि डीएम ने अपने पत्र में रक्सौल के बाटा चौक स्थित रेलवे क्रॉसिंग से भारत-नेपाल सीमा के बीच स्थित मैत्री पुल व इससे जुड़ी सड़क के जर्जर होने का जिक्र किया है। डीएम ने प्रधान सचिव से अनुरोध है कि वे स्वयं अपने स्तर से संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करें।