Tuesday, May 30, 2023
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कभी मदनलाल खुराना की मर्जी के बिना दिल्ली भाजपा में एक पत्ता तक नहीं हिलता था



1984 में जब भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई तब दिल्ली में फिर से पार्टी को खड़ा करने की जिम्मेदारी मदनलाल खुराना ने ही उठायी थी। वह राजस्थान के राज्यपाल भी बने।

निधन के काफी पहले से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना सक्रिय राजनीति से दूर थे, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनकी मर्जी के बिना दिल्ली भाजपा में एक पत्ता तक नहीं हिलता था।
दिल्ली भाजपा में उनकी गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी। यही वजह थी कि वह 1993 से लेकर 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे थे।

इसके बाद जब भाजपा केंद्र में सत्ता में आई तो साल 2004 में वह राजस्थान के राज्यपाल भी बने। हालांकि वाजपेयी सरकार के जाने के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। कभी टीचर भी रहे मदनलाल खुराना के दिल्ली में विकास के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

1984 में जब भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई तब दिल्ली में फिर से पार्टी को खड़ा करने का बीणा मदनलाल खुराना ने ही उठाया था। दिल्ली में उनके कद का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उन्हें दिल्ली का शेर भी कहा जाता था। यह भी गौर करने वाली बात है कि वह पार्टी के निर्णयों पर बार-बार खरे भी उतरे।

केंद्र में जब पहली बार भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनी तो मदन लाल खुराना केंद्रीय मंत्री बने। हालांकि, 2005 में लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के कारण उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। इसके बाद 12 सितंबर 2005 में ही उन्हें फिर से पार्टी में वापस ले लिया गया था। 2006 में वह फिर से भाजपा से निकाले गए, लेकिन भाजपा और दिल्ली की जनता के बीच उसी तरह लोकप्रिय रहे।

दिल्ली को रफ्तार देने में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। वर्ष 2002 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली मेट्रो को हरी झंडी दिखाई थी, उस समय मदनलाल खुराना दिल्ली मेट्रो रेल निगम के अध्यक्ष थे। उन्होंने मेट्रो को लेकर दिल्ली, केंद्र सरकार और मेट्रो निगम के बीच आपसी समन्वय बनाए रखने की बात पर जोर दिया था।

मदनलाल खुराना को ब्रेन हेमरेज के कारण गंगाराम अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। गंभीर अवस्था में उनके मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। उन्हें तब उनको जीवन रक्षक उपकरण के सहारे अस्पताल के आइसीयू में रखा गया था। मदन लाल खुराना को 2011 में भी ब्रेन हेमरेज हुआ था। तब उनके मस्तिष्क के बाएं हिस्से में रक्तस्राव हुआ था। इस बार दिमाग के दाएं हिस्से में रक्तस्राव हुआ था।

बीमारी की वजह से वह लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर थे। दिल्ली भाजपा में उनकी गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी। वह 1993 से लेकर 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे थे। वर्ष 2004 में वह राजस्थान के राज्यपाल बने थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जाने के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।

उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज के अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। इलाहाबाद में ही उनकी छात्र राजनीति की शुरुआत हुई और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री भी चुने गए।

1960 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सचिव बने। सक्रिय राजनीति में आने से पहले उन्होंने पीजीडीएवी कॉलेज में अध्यापन किया। वहीं पर प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा, केदारनाथ साहनी जैसे नेताओं के साथ मिलकर दिल्ली में जनसंघ को स्थापित किया। वह 1965 से 67 तक जन संघ के महमंत्री रहे।

मदनलाल खुराना 1977 से 1980 तक दिल्ली के कार्यकारी पार्षद रहे। उसके बाद दो बार महानगर पार्षद बने। दिल्ली को जब राज्य का दर्जा मिला तो वह 1993 में पहले मुख्यमंत्री चुने गए। इस पद पर वह 1996 तक रहे। 2013 में उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ जिस वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। पिछले लगभग दो वर्षों से वह गंभीर रूप से बीमार थे।

मदन लाल खुराना का जन्म 15 अक्तूबर 1936 में पंजाब प्रांत के लयालपुर में हुआ था। अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में फैसलाबाद के नाम से जाना जाता है। मदन लाल खुराना की उम्र महज 12 साल की थी जब उनका परिवार बंटवारे के बाद दिल्ली आ गया। उस समय वह परिवार के साथ दिल्ली के कीर्ति नगर की रिफ्यूजी कॉलोनी में रहते थे। प्राथमिक शिक्षा के बाद मदन लाल खुराना ने दिल्ली विश्वविद्याल के नामी कॉलेज किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की थी।






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