” सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी है” कथन का सहारा लेते हुए पूर्व पत्रकार,जिले के चर्चित आंदोलनकारी सह भाकपा (माले)के फ्रायर ब्राण्ड युवा नेता सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा है कि सच बोलने एवं पीड़ित लोगों को साथ देने, सूचना अधिकार का ईस्तेमाल करने, दलाल, पुलिस, अधिकारी, माफिया के खिलाफ लिखने, बोलने, संघर्ष चलाने के कारण लगातार वे अपने एवं अपने परिजन के उपर हमला, मुकदमा, जेल झेलते हुए भी सच का साथ इसलिए नहीं छोड़ा कि एक दिन गाँव, गरीब, राज्य और देश की तस्वीर बदलेगी और “हम होंगे कामयाब” सच साबित होगा।
जी हाँ, वे भी रो पड़े! जब ताजपुर प्रखंड के दिधरूआ पंचायत की करीब 70 वर्षीय गरीब मोसमात महिला जहीरा खातुन रोते हुए आपबीती सुनाई। 21 जनवरी को करीब शाम में वे फिर पड़ोस के एक फरीकी युवक को गोरधरिया कर उसके साईकिल पर बैठकर हाथों में राशन कार्ड लिए आशा की निगाह से प्रखंड पर बैठकर बीडीओ साहब से मिलने को आतूर थी।
प्रखंडकर्मी उसे टरकाना चाह रहे थे पर वे लगातार आरजू-मिन्नत किये जा रही थी। इसी बीच इनौस के आशिफ होदा, पंसस नौशाद तौहदी के साथ रसोईया आंदोलन एवं शाहपुर बधौनी में पेयजल समस्या को लेकर बीडीओ से प्रतिनिधिमंडल मिलने पहुँचे ।माले नेता सुरेंद्र प्रसाद सिंह की नजर पड़ी उस बेबस जहीरा पर पडी़। जब उन्होंने कुशल-झेम पूछा तो कुछ बोलने से पहले ही उसके पथराई आँख से अनवरत आसूंओं का समुद्र बहने लगा।
सुरेंद्र ने माँ कहकर माहौल को शांत करने की कोशिश की। फिर संक्षिप्त वार्तालाप का सिलसिला शुरू हुआ। जहीरा ने बताया कि राशन कार्ड उसके पास है लेकिन उसे राशन नहीं मिल पाता है। इसलिए उनके पास खाने की समस्या है।वे कई बार प्रखंड पर आई लेकिन राशन नहीं मिला। फिर वे कार्ड दिखाई।इसमें कई महिने का राशन बकाया था। मौके पर कई लोग धीरे-धीरे जुट चुके थे।बातचीत जारी ही था कि किसी कर्मी ने उनके साईकिल चालक को कुछ धमकी वगैरह देकर डराने और लोक लज्जा की बात समझाने में कामयाब हो गये। वे जल्दी ही रोती हुई जहीरा को लेकर तेजी से भाग निकले। भाकपा (माले) नेता सुरेन्द्र ने इस घटना की जाँच कराने की मांग बीडीओ से कर सच्चाई सामने लाने की मांग की है। साथ ही 28 जनवरी को इस मसले को प्रखंड घेराव में शामिल किये जाने की जानकारी दी ताकि इस बेबस और लाचार व्यवस्था जो सिर के बल खड़ी है उसे पैर के बल किया जा सके।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई मसले हैं जो अंग्रेजी शासन के समान है। आजादी के 72 साल में ऐसे मामले हमें “आजादी” पर सोचने के लिए विवश करती है। सत्ता से शासन तक जनहित के मुद्दे पर टालमटोली रवैया अपनाते रहते हैं साथ ही ऐसे मामले पर मुखर लोगों को शातिराना ढ़ंग से दमन चलाकर किनारे लगा दिया जाता है। उन्होंने समाज से अपील किया कि ऐसे संवेनशील मसले पर आगे आए वरना “एक और संतोषी भात-भात करते-करते मर जाएगी” और हम एक दूसरे को इसके जिम्मेदार ठहराकर मामले से पल्ला झाड़ लेंगे। अंत में उन्होंने एक क्रांतिकारी गीत की पंक्ति को दोहराते हुए–” क्रांति के राग त हम गईबे करब-तोखे न सोहाला त हम का करी”।


