चारा घोटाले में रांची (जेल और अस्पताल) में रहते हुए राजद प्रमुख लालू प्रसाद झारखंड में भाजपा की राह में रोड़े अटका रहे हैं। उनकी मौजूदगी के कारण विपक्षी दलों में ऊर्जा का संचार हो रहा है
अब तक एकला चलो की राह से गुजर रहे कांग्रेस, झामुमो और झाविमो ने लोकसभा चुनाव के पहले गोलबंद होने के संकेत दे दिए हैं। गठबंधन में सबसे बड़ी बाधा बाबूलाल मरांडी को लेकर आ रही थी, लेकिन लालू से लगातार मुलाकात के बाद अब वह भी किसी भी तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
झारखंड में विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद होने वाले हैं। ऐसे में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए भी लालू परेशानी के सबब बन सकते हैं। राजद की झारखंड प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी के मुताबिक विधानसभा की दो सीटों पर हाल में हुए उपचुनाव में मरांडी ने कुर्बानी देकर साबित भी कर दिया है कि भाजपा के खिलाफ झारखंड में विपक्ष महागठबंधन बनाने की ओर बढ़ रहा है।
अन्नपूर्णा इसका श्रेय लालू को देती हैं। उनके मुताबिक मरांडी ने पहली मर्तबा झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व से गुरेज और परहेज नहीं किया है। बड़े दल को बड़ा सम्मान बख्शा है।
झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय झारखंड की राजनीति में लालू की भूमिका को थोड़ा और स्पष्ट करते हैं। उनके मुताबिक लालू प्रसाद की वरिष्ठता विपक्ष के गठबंधन में अहम भूमिका निभा रही है। लालू ने दायें-बायें चल रहे दलों को रास्ता दिखाया है। हालांकि झाविमो प्रमुख बाबूलाल इसे वक्त की जरूरत बताते हैं। भाजपा से अलग होने के बाद से ही एकाकी चल रहे मरांडी को वक्त ने बहुत सारे सबक दिए हैं।
झारखंड की सियासत को भाजपा का विकल्प देने की कोशिश में उनके महत्वपूर्ण 13 साल गुजर गए, लेकिन हर बार उन्हें अपने लोगों ने ही आईना दिखाया है। इसलिए इस बार वह कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस और झामुमो को कभी किसी से परहेज नहीं रहा है। जाहिर है, लालू की मौजूदगी मात्र से झारखंड में विपक्षी एकता की पटकथा तैयार है। सिर्फ घोषणा भर बाकी है